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Showing posts from May, 2018
प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार  Types of Natural Resources प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के होते हैं - 1. असमाप्य संसाधन  2. समाप्य संसाधन 1. असमाप्य संसाधन - (Inexhaustible Resources) :-   इसके अंतर्गत ऐसे प्राकृतिक संसाधनों को सम्मिलित किया गया है जो कि समाप्त नही होने वाले हैं। उदाहरण - वायु,  सूर्य, ज्वार, समुद्र, वर्ष आदि । असमाप्य संसाधन दो प्रकार के होते हैं - (i) अपरिवर्त्य (Immutable) -  इसके अंतर्गत ऐसे अक्षय संसाधनों को सम्मिलित किया गया है जिससे मानव गतिविधियों के कारण परिवर्तित होने की संभावना नही होती है । उदाहरण - वायु, आण्विक ऊर्जा। (ii) परिवरत्य (Mutable) -  इसके अंतर्गत ऐसे संसाधनों को सम्मिलित किया गया है जिनके मानव गतिविधियों के कारण परिवर्तित होने की संभावना रहती है । उदाहरण - वायु एवं जल । इनमे मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण होता है। 2. समाप्य संसाधन (Exhaustible Resources)- ऐसे प्राकृतिक संसाधन होते हैं जिनके लगातार उपयोग होने के कारण समाप्त हो जाने की संभावना होती है। ये संसाधन दो प्रकार के होते हैं- ( i) नवीनीकरण योग्य संसाधन (Renewable Resources)-

प्राकृतिक संसाधन या सम्पदा (Natural Resources)

प्रकृतिक संसाधन या सम्पदा Natural Resources परिचय :-              वन्य प्राणियों एवं पेड़ पौधे के समान मानव भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र का एक साधारण सदस्य है और जीवन यापन के लिए विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहता है, परंतु बुद्धि के विकास ने मानव को प्राकृतिक संसाधनों का मालिक बना दिया है । इस अविवेकपूर्ण उपयोग से भौतिक सुखों में बढ़ोतरी के साथ - साथ प्राकृतिक  संसाधन और जीवधारियों का आपसी संतुलन गड़बड़ाने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है । वास्तव में मानव ने प्राकृतिक संसाधनों की घोर उपेक्षा की है, जिसके दुष्परिणाम अब मनुष्य स्वयं मानव जाति के अस्तित्व के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर रहे हैं। अतः मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए प्रकृतीक संसाधनों का संरक्षण एवं पूर्ण सदुपयोग आज भी प्रमुख समस्या है। संसाधन या सम्पदा संसाधनों के वे स्त्रोत होते हैं जो हमारे जीवित रहने और विकसित होने के लिए जरूरी होते है ।         संसाधन एक गतिशील नामावली है क्योंकि ज्ञान , समाज, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति तथा विकास के साथ इसके अर्थ में भी परिवर्तन होता है । कोई भी वस्तु, जो मनुष्य क

पर्यावरण विनष्टीकरण (अवनयन)

पर्यावरण विनष्टीकरण (अवनयन ) (Enviromntal Degradation) पर्यावरण अजैविक और जैविक संघटको का एक ऐसा समुच्चय है जो जीवधारियों के विकाश के लिए अनुकूल निवास प्रदान करती है। इस निवास्य की सुरक्षा के लिए पर्यावरण के तत्त्व निरंतर क्रिया शील रहते है और साथ ही आपसी ताल-मेल बनाये रखते हैं ।                                                                     किन जब पर्यावरण    के तत्व अपने नैसर्गिक गुणों के विपरीत प्रभाव डालते है। पर्यावरण    के इसी परिवर्तन को अवनयन या हास्य पर्यावरण अवक्रमण कहा जाता है।     पर्यावरण हास्य तब शुरू होता है जब जीवधारी,विशेष कर मनुष्य उसकी उपेक्षा एवं अवमानना करने लगता है इस क्रम में  पर्यावरण के प्रति किये गये अमैत्रीपूर्ण कार्य तथा प्रदुषण विस्तार, वन विनाश, अधिक जनभार, संसाधनों का अनुचित दोहन आदि स्वनियमन जन्य क्षमता से अधिक हो जाता हो जाता है तो उसके फलस्वरूप पर्यावरण के तत्त्व पंगु होने लगती है। इसका सीधा प्रभाव पारिस्थितिकी पर पड़ता है। पारिस्थितिकी के असंतुलन से पर्यावरण हास्य का आभास होता है।स्पष्ट है की पर्यावरण के हास्य के लिए मानव सबसे बड़ा कारण ह

पर्यावरण परिवर्तन संरक्षण

पर्यावरण परिवर्तन एवं   संरक्षण (ENVIRONMENTAL CHANGES AND CONSERVATION) परिचय   ( INTRODUCTION)                                               प्राकृतिक   पर्यावरण का निर्माण अजैव और जैव घटकों से हैं घटको में मानव सर्वाधिक महत्वपूर्ण  तत्त्व है जो अपने क्रिया - कलापों से पर्यावरण को सर्वाधिक प्रभावित करता है । यह पर्यावरण का नियंत्रक, संचालक , रूपान्तरक और विनाशक है ईंन क्रियाओ को  रूप देने में देने में वह खुद पर्यावरण द्वारा बदलता रहता है। अपनी क्षमता, आवश्यकता और भावना के द्द्वारा वह अपने परिवेश की व्याख्या का नियमन करता है ।                                    अ तः स्पष्ट है कीपर्यावरणऔर परिस्थितिक की कार्य प्रणाली की स्वनियमनव्यवस्था द्वारा संचालित होती है । पर्यावरण तत्त्व पारिस्थितिक का नियंत्रण कर जीवन विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों का  निर्माण करते है ।यह व्यवस्था तब तक चलती रहती है जब तक पर्यावरण में   संतुलन बना है अर्थात  पर्यावरण का तत्त्व  अपने गुण के अनुशार आपस में तथा जैविक घटक के साथ परस्पर क्रिया करते है, लेकिन जब भौतिक या मानवीय कारणों से पर्यावरण के कि

जलीय पारिस्थितिक तंत्र (Aquatic Ecosystem)

                     जलीय पारिस्थितिक तंत्र                       ( Aquatic Ecosystem) इसके अंतर्गत जल में पाये जाने वाले परिस्थितिक तंत्रो को शामिल किया गया हैं  - जैसे :-         (A) तालाब या झील का पारिस्थितिक तंत्र         (B) समुद्र का पारिस्थितिक तंत्         (C) समुद्र तटीय पारिस्थितिक तंत्र (A) तालाब झील का पारिस्थितिक तंत्र  ( Pond or Lake Ecosystem - An Aquatic Ecosystem) एक तालाब या झील अपने आप में पूर्ण एवं स्वतः नियामक पारिस्थितिक तंत्र होता हैं यह पारिस्थितिक तंत्र दोनों आवश्यक घटको अजैविक घातक एवं जैविक घटक , उत्पादक , उपभोक्ता एवं अपघटक से मिलकर बनता है (1)  अजैविक घटक ( Biotic Components)- तालाब के पारिस्थितिक तंत्र में को प्रकार के अजैविक घटक पाए जाते हैं - (i) अकार्बनिक घटक - ( Inorganic Components) - उदाहरण -  जल( H2O), कारबनडाईआक्साईड( CO2), ऑक्सीजन( O2), कैल्शियम ( C) , नाइट्रोजन( N2) एवं फास्फोरस( P) के यौगिक । (ii) कार्बनिक घटक ( Organic Components)- उदाहरण - अमीनों अम्ल । (2) जैविक घटक ( Biotic Componets) - तालाब या झील

मरुस्थलीय परिस्थितिक तंत्र(Desert Ecosystem)

  मरुस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र  (Desert Ecosystem) पृथ्वी के ऐसे भू-भाग जहां पर औसत वार्षिक वर्षा 25 से.मि. से कम होती है वो मरुस्थल के अंतर्गत सम्मिलित है ऐसे स्थानों का तापक्रम अधिक होता है तथा यहा पानी की कमी होती है, अतः  मरुस्थलीय स्थानों पर पेड़-पौधों एवं जंतुओ की संख्या कम होती है। मरुस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में निम्न लिखित तीन घटक होते है- (1)अजैविक घटक ( Abiotic Components) (a) अकार्बनिक घटक - मृदा , जल (कम मात्रा में ), वायु (तेज प्रवाह), प्रकाश(तीव्र), खनिज तत्व , गैसें जैसें- CO2, N2, K2  आदि । (b) कार्बनिक घटक - कार्बोहईड्रेट्स, प्रोटीन्स, लिपिड्स, एमिनो, अम्ल आदि। (2)जैविक घटक ( Biotic Components) (a) उत्पाद :-   इसके अंतर्गत घनी झाड़ियाँ, कुछ प्रकार के घास तथा कुछ हरे पौधे जैसे- नागफनी, बाबुल, कंटीले पौधे आदि पाये जाते है। (b) उपभोक्ता :-   मरुस्त्थलीय  पारिस्थितिक तंत्र में भी तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जााते हैं - (1) प्राथमिक उपभोक्ता( Primary Consumers) सभी उपभोक्ता जो शाकाहारी( Herbivorus)  होते हैं , तथा अपने भोजन हेतु उत्पादकों पर न
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  घास के मैदान का परिस्थियिक तंत्र            ( Grassland Ecosystem) घास के पारिस्थितिक तंत्र या पारिस्थितिक तंत्रो से भिन्न होता है । ये घास स्थल ऐसे क्षेत्रों में अधिकतम पाये जाते है, जहाँ पर ओसत  वर्षा 25 से 75 से.मी. तक होती है। इनमे लंबी -लंबी घाँस एवं झाड़ियो की अधिकता होती है जबकि वृक्षो का दूर-दूर तक अभाव होता है । अफ्रीका में सवाना ( Savana) घास मैदान, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका , साइबेरिया, दक्षिण रूस आदि, देशो में बड़े -बड़े घास के मैदान पाये जाते है । इनकी उपजाऊ शक्ति अधिक होती  है, क्योंकि इनकी मिट्टी में ह्युमस( Humas) युक्त होती हैं । पूरे भारत में लगभग 8% भाग में घास का मैदान उपस्थित है। घास के मैदान के पारिस्थितिक तंत्र के प्रमुख घटक   (Functionl Components of a Grassland Ecosystem) 1. अजैविक घटक( Abiotic Components) घास के मैदान में भी दो प्रकार के अजैविक  घटक पाये जाते है- (a) अकार्बनिक घटक :-   उदाहरण जल, वायु, प्रकाश, वर्ष खनिज तत्व , गैसें  जैसें- CO2 , N2, O2 आदि गैसें। (b) कार्बनिक घटक :-    उदाहरण प्रोटिन, कार्बोहाईड्रे

Forest Ecosystem

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  वन का पारिस्थितिक  तंत्र ( Forest Ecosystem) वन का परिस्थितिक तंत्र स्वयं में परिपूर्ण एवं  स्वतः नियामक परिस्थितिक तंत्र होता हैं। वन का परिस्थितिक तंत्र दो प्रमुख घटको से मिलकर बनता हैं। (1) अजैविक घटक ( Abiotic Components) वन के परिस्थितिक तंत्र में दो प्रकार के जैविक घटक पाये जाते हैं - (i) अकार्बनिक अजैविक घटक -  CO2 , N2, O2, जल, प्रकाश, वायु आदि । (ii) कार्बनिक अजैविक घटक - वन में उपस्थित हरे पौधे इन अकार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण करता हैं । (2) जैविक घटक ( Biotic Components) इसमें जीव धारी एवं पेड़ पौधे सम्मिलित हैं। जो तीन प्रकार के हैं - (i) उत्पादक ( Producer's)   समस्त हरे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण की सहायता से सौर ऊर्जा(प्रकाश), जल एवं CO2  का  उपयोग करके अपना भोजन स्वयंम बनाते है। (ii) उपभोक्ता ( Consumers) इसमे ऐसे जीवधारी सम्मिलित हैं जो अपना पोषण हेतु अन्य जीवों या पेड़ -पौधों पर आश्रित होते हैं। वनों में तीन प्रकार के उपभोकता पाये जाते हैं- (a) प्राथमिक उपभोक्ता ( Pri