पर्यावरण विनष्टीकरण (अवनयन)

पर्यावरण विनष्टीकरण (अवनयन )
(Enviromntal Degradation)

पर्यावरण अजैविक और जैविक संघटको का एक ऐसा समुच्चय है जो जीवधारियों के विकाश के लिए अनुकूल निवास प्रदान करती है। इस निवास्य की सुरक्षा के लिए पर्यावरण के तत्त्व निरंतर क्रिया शील रहते है और साथ ही आपसी ताल-मेल बनाये रखते हैं ।                                                                   किन जब पर्यावरण  के तत्व अपने नैसर्गिक गुणों के विपरीत प्रभाव डालते है। पर्यावरण  के इसी परिवर्तन को अवनयन या हास्य पर्यावरण अवक्रमण कहा जाता है।   
पर्यावरण हास्य तब शुरू होता है जब जीवधारी,विशेष कर मनुष्य उसकी उपेक्षा एवं अवमानना करने लगता है इस क्रम में  पर्यावरण के प्रति किये गये अमैत्रीपूर्ण कार्य तथा प्रदुषण विस्तार, वन विनाश, अधिक जनभार, संसाधनों का अनुचित दोहन आदि स्वनियमन जन्य क्षमता से अधिक हो जाता हो जाता है तो उसके फलस्वरूप पर्यावरण के तत्त्व पंगु होने लगती है। इसका सीधा प्रभाव पारिस्थितिकी पर पड़ता है। पारिस्थितिकी के असंतुलन से पर्यावरण हास्य का आभास होता है।स्पष्ट है की पर्यावरण के हास्य के लिए मानव सबसे बड़ा कारण है। उदहारण – वनों की अंधाधुंध कटाई,औद्योगिक विकास,  नगरीकरण और बढती जनसंख्या के कारण पर्यावरण प्रदुसन घातक हो गये है प्रदुषण से पर्यावरण के अनेक तत्त्व जैसे वायु, जल मृदा आदि स्वाभाविक गुण खोते जा रहे हैं ।वन्स्पत्ति विनाश से जलवायु और मौसम का रुख बदल रहा है । भुमिक्षरण सुखा और बाढ़ का प्रकोप पढता जा रहा है ।

पर्यावरण अवनयन के प्रमुख कारण:-
इसके प्रमुख प्रक्रियाएं निम्न हैं -
1. प्राकृतिक वनस्पत्ति का विनाश ।
2. जैविक सम्पदा का विनाश ।
3. वनस्पत्तियाँ एवं पालतू जानवरो का प्रतिस्थापन ।
4. जीवो की अनुवांशिक में परिवर्तन ।
5. कृत्रिम रसायनों का अनियोजित दोहन ।
6. कृत्रिम रसायनों का अनियंत्रित उपयोग ।
7. पर्यावरणीय प्रक्रियाओं में परिवर्तन ।
8. वायुमंडलीय गैसों की गुणवत्ता में हेरफेर ।
9. संसाधनो का अपव्यव ।
10. प्रकृति के प्रति संवेदनहीनता ।

पर्यावरण परिवर्तन एवं अवनयन के प्रभाव - पहले हमने अध्ययन किया है कि विभिन्न मानवीय एवं प्रकृति कारणों से से ही पर्यावरण में परिवर्तन एवं अवनयन होते है । इसके अवनयन से पड़ने वाले प्रभाव निम्ननुसार है-

1. प्राकृतिक वनस्पत्ति का विनाश - फलतः पारिस्थितिक तंत्र की नैसर्गिक कार्यशैली में व्यवधान एवं प्राकृतिक आवास स्तहनो का नष्ट होना ।
2. जैविक सम्पदा का विनाश - फलतः पौधे और प्राणियों की जातियों का विलोप और उल्टा पारिस्थितिकी पिरामिड का सरीजन ।
3. वनस्पत्तियाँ और पालतू जीवों का प्रतिस्थापन - फलतः पारिस्थितिकी की गुणवत्ता में हास्य ।
4. जैव आनुवंशिक में परिवर्तन - फलतः जैविक प्रतिरोधन का हास्य ।
5. प्राकृतिक संसाधनों का अनियोजित दोहन - फ़लठ पर्यावरण का गुणात्मक हास्यऔर संसाधनों का आभाव।
7. पर्यावरणीय प्रक्रमो में परिवर्तन - फलतः विविध प्रकार की मानव निर्मित आपदाओ को निमंत्रण।
8. वायुमंडलीय गैसों की गुणवत्ता में  हेरफेर - फलतः नई पर्यावरणीय समस्याओ का जन्म ।
9. आर्थिक कार्यों के लिए प्रकृति के संसाधनों का अपव्यव - अनेक संसाधनों का विलोप एवं पर्यावरणीय प्रभाव में हास्य ।

10. प्रकृति के प्रति संवेदनशील - फलतः लालची, स्वार्थी और कदाचारी मनोवृत्ती को बढ़ावा।

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